यह चित्त की अवस्था है जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन में पूरी तरह लीन हो जाता है। योग दर्शन समाधि के द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति को संभव मानता है।
समाधि की भी दो श्रेणियां हैं :
1.सम्प्रज्ञात और
2.असम्प्रज्ञात।
सम्प्रज्ञात समाधि वितर्क, विचार, आनंद और अस्मितानुगत होती है।
असम्प्रज्ञात में सात्विक, राजस और तामस सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है। इसे बौद्ध धर्म में संबोधि, जैन धर्म में केवल्य और हिन्दू धर्म में मोक्ष प्राप्त करना कहते हैं। इस सामान्य भाषा में मुक्ति कहते हैं।
पुराणों में मुक्ति के 6 प्रकार बताएं गए है जो इस प्रकार हैं-
1.साष्ट्रि, (ऐश्वर्य),
2.सालोक्य (लोक की प्राप्ति),
3.सारूप (ब्रह्मस्वरूप),
4.सामीप्य, (ब्रह्म के पास),
5.साम्य (ब्रह्म जैसी समानता)
6.लीनता या सायुज्य (ब्रह्म में लीन होकर ब्रह्म हो जाना)।
समाधि की भी दो श्रेणियां हैं :
1.सम्प्रज्ञात और
2.असम्प्रज्ञात।
सम्प्रज्ञात समाधि वितर्क, विचार, आनंद और अस्मितानुगत होती है।
असम्प्रज्ञात में सात्विक, राजस और तामस सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है। इसे बौद्ध धर्म में संबोधि, जैन धर्म में केवल्य और हिन्दू धर्म में मोक्ष प्राप्त करना कहते हैं। इस सामान्य भाषा में मुक्ति कहते हैं।
पुराणों में मुक्ति के 6 प्रकार बताएं गए है जो इस प्रकार हैं-
1.साष्ट्रि, (ऐश्वर्य),
2.सालोक्य (लोक की प्राप्ति),
3.सारूप (ब्रह्मस्वरूप),
4.सामीप्य, (ब्रह्म के पास),
5.साम्य (ब्रह्म जैसी समानता)
6.लीनता या सायुज्य (ब्रह्म में लीन होकर ब्रह्म हो जाना)।
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