Tuesday, March 24, 2020

योग का अंग है 'ॐ' और 'सूर्य नमस्कार'

कुछ मुस्लिम धर्मगुरुओं के विरोध के चलते पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस में 'ॐ' का उच्चारण और 'सूर्य नमस्कार' को हटा दिया गया। हटाए जाने के बाद भी हालांकि वे लोग कहीं भी योग करते नहीं दिखाई दिए। योग से 'ॐ' और 'सूर्य नमस्कार' को हटाना ऐसा ही है, जैसे कि आरती से घंटी को, अंगों से वस्त्रों को और फिल्म से टाइटल को या प्रोमो को। 

विरोधी मानते हैं कि 'ॐ' और 'सूर्य नमस्कार' को साजिश के तहत योग में जोड़ा गया। उनकी यह बात किस हद तक सही है यह तो वही बता सकते हैं, लेकिन यहां यह कहना होगा कि पतंजलि के वक्त न तो ईसाई धर्म था और न इस्लाम, तब साजिश किसके खिलाफ और क्यों करें? उस काल में योग आम लोगों के बीच प्रचलित भी नहीं था, यह सिर्फ साधुओं और संन्यासियों के बीच ही मोक्ष प्राप्ति का साधन था। तभी से इसके साथ 'ॐ' और 'सूर्य नमस्कार' करने की परंपरा चली आ रही है। 

ओम (ॐ) क्या है : 'ॐ' को अनहद नाद कहते हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति के भीतर और इस ब्रह्मांड में सतत गूंजता रहता है। इसके गूंजते रहने का कोई कारण नहीं। सामान्यत: नियम है कि ध्‍वनि उत्पन्न होती है किसी की टकराहट से, लेकिन अनाहत को उत्पन्न नहीं किया जा सकता। 

ओम प्रत्येक धर्म में है। मध्य एशिया में जाकर ओम ओमीन और आमीन हो गया। ओम 3 अक्षरों से मिलकर बना है- अ, उ और म। ये मूल ध्वनियां हैं, जो हमारे चारों तरफ हर समय उच्चारित होती रहती हैं। आप नदी किनारे, समुद्र किनारे या किसी बंद कमरे में बैठकर इसे गौर से सुनने का प्रयास करें। ध्यान दें, गौर करें कि बाहर जो ढेर सारी आवाजें हैं उनमें एक आवाज ऐसी है, जो सतत जारी रहती है- जैसे प्लेन की आवाज जैसी आवाज, फेन की आवाज जैसी आवाज या जैसे कोई कर रहा है 'ॐ' का उच्‍चारण अर्थात सन्नाटे की आवाज। इसी तरह शरीर के भीतर भी आवाज जारी है। ध्यान दें। आंखें बंद कर यह आवाज सुनें। सुनने का अभ्यास गहरा होगा तो आपको पता चलेगा कि यह आवाज आपके भीतर भी है।

लाभ :

अ, उ और म- यह नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र को जगाता है। ओम के निरंतर जाप से तनाव से पूरी तरह मुक्ति मिलती है। ओम के जाप से दिमाग शांत होता है और बहुत-सी शारीरिक तकलीफें दूर होती हैं। इससे आंतरिक और बाह्य विकारों का निदान होता है और नियमित जाप से व्यक्ति के प्रभामंडल में वृद्धि होती है। यह रिसर्च द्वारा सिद्ध हो चुका है।

सूर्य की शक्ति को नमस्कार :

मानव सहित सभी प्राणी, जीव और जंतु धरती के अंश हैं। धरती पर जीवन है पंच तत्वों के कारण। पंच तत्व हैं- आकाश, अग्नि, वायु, जल और धरती। ये पांचों तत्व व्यक्ति के भीतर भी हैं और बाहर भी। सूर्य को अग्नि तत्व माना गया है। वेदों में इसे जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य न हो तो धरती पर सभी प्रकार का जीवन नष्ट हो जाएगा। कई ऐसे पुरुष हुए हैं जिन्होंने सूर्य साधना के बल पर खुद को अजर-अमर कर लिया है और कई ऐसे हैं, जो कई वर्षों से अन्न और जल के बगैर भी जी रहे हैं। 'सूर्य सिद्धांत मणि' जैसे कई ग्रंथ हैं, जो सूर्य की रोशनी के महत्व का वर्णन करते हैं। आजकल सौर ऊर्जा से बिजली और अन्य उपकरण चलने लगे हैं। भविष्य में इसके महत्व को और समझा जाएगा। 

'सूर्य नमस्कार' क्या है? अब बात करते हैं 'सूर्य नमस्कार' की। सूर्य को नमस्कार करने का अर्थ उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना है। यह हमारा नैतिक कर्तव्य है, क्योंकि उसी के कारण हम जिंदा हैं। यदि आप उसके प्रति श्रद्धा के भाव से नहीं भरे हैं तो आपसे किसी अन्य के प्रति प्रेम या संवेदनशीलता की अपेक्षा नहीं की जा सकती। हालांकि 'सूर्य नमस्कार' योग करते वक्त किसी भी प्रकार से सूर्य का ध्यान, पूजा, प्रार्थना या नमस्कार करने की बाध्‍यता नहीं। 

'सूर्य नमस्कार' का नाम और कुछ भी हो सकता था, जैसे कि सर्वांग योगासन या षाष्टांग योग। दरअसल, 'सूर्य नमस्कार' में योग के सभी प्रमुख आसनों का समावेश हो जाता है। यह सभी आसनों का एक पैकेज है। व्यक्ति यदि सभी आसन न करते हुए मात्र 'सूर्य नमस्कार' ही करता रहे तो वह संपूर्ण आसनों का लाभ प्राप्त कर सकता है, क्योंकि 'सूर्य नमस्कार' करते वक्त ताड़ासन, अर्धचक्रासन, पादहस्तासन, आंजनेय आसन, प्रसरणासन, द्विपाद प्रसरणासन, भू-धरासन, अष्टांग, प्रविधातासन तथा भुजंगासन आदि सभी आसनों का समावेश हो जाता है।

'सूर्य नमस्कार' के लाभ :

'सूर्य नमस्कार' अत्यधिक लाभकारी है। इसके अभ्यास से हाथों और पैरों का दर्द दूर होकर उनमें सबलता आती है। गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर हल्का-फुल्का हो जाता है। 

सूर्य नमस्कार द्वारा त्वचा रोग समाप्त हो जाते हैं अथवा इनके होने की आशंका समाप्त हो जाती है। इस अभ्यास से कब्ज आदि उदर रोग समाप्त हो जाते हैं और पाचन तंत्र की क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है। इस अभ्यास द्वारा हमारे शरीर की छोटी-बड़ी सभी नस-नाड़ियां क्रियाशील हो जाती हैं इसलिए आलस्य, अतिनिद्रा आदि विकार दूर हो जाते हैं। 

इस योग से पेट की मांसपेशियां मजबूत हो जाती हैं। उससे पाचन शक्ति बढ़ती है। शरीर के ज्यादा वजन को घटाने में मददगार है। शरीर में खून का प्रवाह तेज होने से ब्लड प्रेशर की बीमारी में आराम मिलता है। बालों को असमय सफेद होने, झड़ने व रूसी से बचाता है। व्यक्ति में धीरज रखने की क्षमता बढ़ती है। सहनशीलता बढ़ाने और क्रोध पर काबू रखने में मददगार है। शरीर में लचीलापन आता है जिससे पीठ और पैरों के दर्द की आशंका कम होती है।

योग के फायदे

शरीर को अलग अलग मुद्राओं में मोड़ना या असंभव लगने वाली क्रियाएं करना ही योग नहीं है। योग में व्यक्ति का मस्तिष्क और शरीर कुछ इस तरह मिलते हैं जिससे दिमागी कसरत तो होती ही है साथ ही शरीर को बिना कोई नुकसान पहुंचे अत्यंत लाभ भी मिलते हैं। 

योग से उच्च रक्तचाप सामान्य होता है, तनाव कम होता है, मोटापे और कोलेस्ट्रोल पर नियंत्रण होता है इसके साथ ही व्यक्ति का रक्तसंचार तेज होता है जिससे सौंदर्य में भी वृद्धि होती है। इसका प्रभाव तन ही नहीं बल्कि मन पर भी पड़ता है। योग करने से मन शांत रहता है। योग के जादुई फायदों के कारण ही पूरा संसार अब योग की ओर बढ़ रहा है। आध्यात्मिक दृष्टि से भी योग के अलग फायदे हैं। आइए जानते हैं योगासन के गुण और लाभ के बारे में-

1- मन की शांति

योग के संपूर्ण रूप से सांस लेने और संतुलन वाले आसनों पर केंद्रित होने के कारण मस्तिष्क शांत रहता है। साथ ही शरीर भी संतुलित रहता है। इसके कारण हम मस्तिष्क के दोनों भागों से काम लेते हैं जिससे आंतरिक संचार बेहतर होता है। योग करने से मस्तिष्क के सोचने और सृजनात्मकता वाले हिस्सों का भी संतुलन बना रहता है।

2- गर्भावस्था में योग

गर्भावस्था में स्वस्थ रहने का सबसे आसान तरीका है योग को अपना जाए। नियमित रूप से योग करने वाली गर्भवती महिलाओं को थकान कम होती है तनाव दूर होता है साथ ही मांसपेशियों में खिंचाव के कारण लचीलापन भी आता है। 

इतना ही नहीं बेहतर रक्तसंचार पाचन और स्नायुतांपर नियंत्रण रहता है। इसके कारण पीठ में दर्द नींद न आना पैरों में दर्द अपच जैसे लक्षणों में आराम मिलता है। हालांकि गर्भवती महिलाओं को कुछ भी शुरू करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर लेनी चाहिए।

3- बेहतर रक्तसंचार

अलग अलग तरह की योग मुद्राओं और सांस लेने की क्रियाओं के सांमजस्य के कारण योग से शरीर में बेहतर रक्तसंचार होता है। बेहतर रक्तसंचार से शरीर में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों को बेहतर प्रवहन होने में मदद मिलती है। जिससे त्वचा और आंतरिक अंग स्वस्थ रहते है।

4- मोटापे से मुक्ति के लिए योग

योग से पेट के अलावा शरीर के अन्य भागों से भी अतिरिक्त चर्बी को हटा सकते हैं। अलग अलग हिस्सों की चर्बी हटाने के लिए अलग अलग योग हैं। किसी एक कसरत से ऐसा होना संभव नहीं इसलिए धैर्य के साथ योग को अपनाएं।

5- स्वस्थ हृदय

ऐसा कोई भी योग जिसमें कुछ समय के लिए सांस रोकी जाती है हृदय और उसकी धमनियों को स्वस्थ रखता है। योग रक्तसंचार को बेहतर करता है जिससे रक्त एक जगह रूकता नहीं और हृदय स्वस्थ रहता है।

6- दर्द से रखे दूर

योग से शरीर का लचीलापन और एनर्जी बढ़ती है जिससे पीठ का दर्द जोड़ों का दर्द आदि में बेहद आराम मिलता है। इससे रीढ़ की हड्डी में दबाव और जकड़न से भी आराम मिलता है। इतना ही नहीं गलत ढंग से बैठने या चलने के कारण होने वाले दर्द में भी योग से आराम मिलता है।

7- सांस लेने की बेहतर प्रक्रिया

योग के विभिन्न आसानों से फेफड़े और उदर भाग की क्षमता बढ़ती है! इससे दैनिक कार्यक्षमता बढ़ती है साथ ही सहनशक्ति में इजाफा होता है। गहरी सांस लेने में भी आराम मिलता है जिससे विभिन्न प्रकार के भौतिक और मानसिक तनावों से मुक्ति मिलती है।

8- बना रहता है शरीर का संतुलन

ठीक ढंग से न बैठना ज्यादा ट्रैवल करना या हमेशा बाइक पर रहना आदि के कारण शरीर का संतुलन बिगड़ने लगता है। योग करने से शरीर का संतुलन बना रहता है। कई बार गिरकर चोट लगने हड्डी के टूटने पीठ आदि संबंधित समस्याओं में दर्द के कारण भी संतुलन बिगड़ता है। 

योग से शरीर का लचीलापन बढ़ता है साथ ही दिमाग भी तेज होता है।

9- तनाव को करें कम

भागमभाग भरी जिंदगी में योग करने से अपार शांति मिलती है। पूरे शरीर में रक्तसंचार बेहतर होता है जिससे मस्तिष्क हल्का महसूस करता है और तनाव कम होता है।

10- संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए अपनाएं योग

अच्छा स्वास्थ्य केवल बीमारियों से दूर रहना ही नहीं है बल्कि अपने मन और भावनाओं के बीच संतुलन को स्थापित करना भी है। योग से न केवल बीमारियां दूर होती हैं बल्कि योग आपको गतिशील, खुश और उत्साही भी बनाता है।

11- सौंदर्य को बढ़ाए

शारीरिक स्वास्थ्य के साथ ही योग से चेहरे का नूर भी बढ़ाया जा सकता है। मुहांसों से लेकर डल स्किन और बालों को सुंदर बनाने में भी योग महत्वपूर्ण योगदान देता है। 

इनके अलावा भी योग के और बहुत से फायदे हैं। योग के विभिन्न आसन अलग अलग बीमारियों की रोकथाम में फायदेमंद हैं। हाल के वर्षों में योग को लेकर हुई जागरुकता ने इसे दुनिया भर में प्रसिद्ध कर दिया है।

योग ग्रंथ

वेद, उपनिषद्, भगवद गीता, हठ योग प्रदीपिका, योग दर्शन, शिव संहिता और विभिन्न तंत्र ग्रंथों में योग विद्या का उल्लेख मिलता है। सभी को आधार बनाकर पतंजलि ने योग सूत्र लिखा। योग पर लिखा गया सर्वप्रथम सुव्यव्यवस्थित ग्रंथ है- योगसूत्र। योगसूत्र को पांतजलि ने 200 ई.पूर्व लिखा था। इस ग्रंथ पर अब तक हजारों भाष्य लिखे गए हैं, लेकिन कुछ खास भाष्यों का यहां उल्लेख लिखते हैं।

व्यास भाष्य:

व्यास भाष्य का रचना काल 200-400 ईसा पूर्व का माना जाता है। महर्षि पतंजलि का ग्रंथ योग सूत्र योग की सभी विद्याओं का ठीक-ठीक संग्रह माना जाता है। इसी रचना पर व्यासजी के 'व्यास भाष्य' को योग सूत्र पर लिखा प्रथम प्रामाणिक भाष्य माना जाता है। व्यास द्वारा महर्षि पतंजलि के योग सूत्र पर दी गई विस्तृत लेकिन सुव्यवस्थित व्याख्या।

तत्त्ववैशारदी :

पतंजलि योगसूत्र के व्यास भाष्य के प्रामाणिक व्याख्याकार के रूप में वाचस्पति मिश्र का 'तत्त्ववैशारदी' प्रमुख ग्रंथ माना जाता है। वाचस्पति मिश्र ने योगसूत्र एवं व्यास भाष्य दोनों पर ही अपनी व्याख्या दी है। तत्त्ववैशारदी का रचना काल 841 ईसा पश्चात माना जाता है।

योगवार्तिक :

विज्ञानभिक्षु का समय विद्वानों के द्वारा 16वीं शताब्दी के मध्य में माना जाता है। योगसूत्र पर महत्वपूर्ण व्याख्या विज्ञानभिक्षु की प्राप्त होती है जिसका नाम ‘योगवार्तिक’ है।

भोजवृत्ति :

भोज के राज्य का समय 1075-1110 विक्रम संवत माना जाता है। धरेश्वर भोज के नाम से प्रसिद्ध व्यक्ति ने योग सूत्र पर जो 'भोजवृत्ति नामक ग्रंथ लिखा है वह भोजवृत्ति योगविद्वजनों के बीच समादरणीय एवं प्रसिद्ध माना जाता है। कुछ इतिहासकार इसे 16वीं सदी का ग्रंथ मानते हैं।

योग का संक्षिप्त इतिहास

योग का उपदेश सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ ब्रह्मा ने सनकादिकों को, पश्चात विवस्वान (सूर्य) को दिया। बाद में यह दो शखाओं में विभक्त हो गया। एक ब्रह्मयोग और दूसरा कर्मयोग। ब्रह्मयोग की परम्परा सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुर‍ि, वोढु और पच्चंशिख नारद-शुकादिकों ने शुरू की थी। यह ब्रह्मयोग लोगों के बीच में ज्ञान, अध्यात्म और सांख्‍य योग नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

दूसरी कर्मयोग की परम्परा विवस्वान की है। विवस्वान ने मनु को, मनु ने इक्ष्वाकु को, इक्ष्वाकु ने राजर्षियों एवं प्रजाओं को योग का उपदेश दिया। उक्त सभी बातों का वेद और पुराणों में उल्लेख मिलता है। वेद को संसार की प्रथम पुस्तक माना जाता है जिसका उत्पत्ति काल लगभग 10000 वर्ष पूर्व का माना जाता है। पुरातत्ववेत्ताओं अनुसार योग की उत्पत्ति 5000 ई.पू. में हुई। गुरु-शिष्य परम्परा के द्वारा योग का ज्ञान परम्परागत तौर पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलता रहा।

भारतीय योग जानकारों के अनुसार योग की उत्पत्ति भारत में लगभग 5000 वर्ष से भी अधिक समय पहले हुई थी। योग की सबसे आश्चर्यजनक खोज 1920 के शुरुआत में हुई। 1920 में पुरातत्व वैज्ञानिकों ने 'सिंधु सरस्वती सभ्यता' को खोजा था जिसमें प्राचीन हिंदू धर्म और योग की परंपरा होने के सबूत मिलते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को 3300-1700 बी.सी.ई. पूराना माना जाता है।

कुंडलिनी योग

कुंडलिनी शक्ति सुषुम्ना नाड़ी में नाभि के निचले हिस्से में सोई हुई अवस्था में रहती है, जो ध्यान के गहराने के साथ ही सभी चक्रों से गुजरती हुई सहस्रार चक्र तक पहुंचती है।

ये चक्र 7 होते हैं:-

मूलाधार,
स्वाधिष्ठान,
मणिपुर,
अनाहत,
विशुद्धि,
आज्ञा और 
सहस्रार। 

72 हजार नाड़ियों में से प्रमुख रूप से तीन है:
इड़ा,
पिंगला और 
सुषुम्ना।

इड़ा और पिंगला नासिका के दोनों छिद्रों से जुड़ी है जबकि सुषुम्ना भ्रकुटी के बीच के स्थान से। स्वरयोग इड़ा और पिंगला के विषय में विस्तृत जानकारी देते हुए स्वरों को परिवर्तित करने, रोग दूर करने, सिद्धि प्राप्त करने और भविष्यवाणी करने जैसी शक्तियाँ प्राप्त करने के विषय में गहन मार्गदर्शन होता है।

दोनों नासिका से सांस चलने का अर्थ है कि उस समय सुषुम्ना क्रियाशील है। ध्यान, प्रार्थना, जप, चिंतन और उत्कृष्ट कार्य करने के लिए यही समय सर्वश्रेष्ठ होता है।

योगाभ्यास की बाधाएं

आहार, प्रयास, प्रजल्प, नियमाग्रह, जनसंग और लौल्य। इसी को सामान्य भाषा में आहार अर्थात अतिभोजन, प्रयास अर्थात आसनों के साथ जोर-जबरदस्ती, प्रजल्प अर्थात अभ्यास का दिखावा, नियामाग्रह अर्थात योग करने के कड़े नियम बनाना, जनसंग अर्थात अधिक जनसंपर्क और अंत में लौल्य का मतलब शारीरिक और मानसिक चंचलता।

समाधि

यह चित्त की अवस्था है जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन में पूरी तरह लीन हो जाता है। योग दर्शन समाधि के द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति को संभव मानता है। 

समाधि की भी दो श्रेणियां हैं :
1.सम्प्रज्ञात और
2.असम्प्रज्ञात।

सम्प्रज्ञात समाधि वितर्क, विचार, आनंद और अस्मितानुगत होती है।

असम्प्रज्ञात में सात्विक, राजस और तामस सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है। इसे बौद्ध धर्म में संबोधि, जैन धर्म में केवल्य और हिन्दू धर्म में मोक्ष प्राप्त करना कहते हैं। इस सामान्य भाषा में मुक्ति कहते हैं। 

पुराणों में मुक्ति के 6 प्रकार बताएं गए है जो इस प्रकार हैं- 

1.साष्ट्रि, (ऐश्वर्य),
2.सालोक्य (लोक की प्राप्ति),
3.सारूप (ब्रह्मस्वरूप),
4.सामीप्य, (ब्रह्म के पास),
5.साम्य (ब्रह्म जैसी समानता)
6.लीनता या सायुज्य (ब्रह्म में लीन होकर ब्रह्म हो जाना)।

Sunday, March 22, 2020

ध्यान

जब ध्येय वस्तु का चिंतन करते हुए चित्त तद्रूप हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। पूर्ण ध्यान की स्थिति में किसी अन्य वस्तु का ज्ञान अथवा उसकी स्मृति चित्त में प्रविष्ट नहीं होती।

ध्यान के रूढ़ प्रकार:-

स्थूल ध्यान, ज्योतिर्ध्यान और सूक्ष्म ध्यान।

ध्यान विधियां:-

श्वास ध्यान, साक्षी भाव, नासाग्र ध्यान, विपश्यना ध्यान आदि हजारों ध्यान विधियां हैं।

धारणा

चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना ही धारणा है।

प्रत्याहार के सधने से धारणा स्वत: ही घटित होती है।

धारणा धारण किया हुआ चित्त कैसी भी धारणा या कल्पना करता है, तो वैसे ही घटित होने लगता है।

यदि ऐसे व्यक्ति किसी एक कागज को हाथ में लेकर यह सोचे की यह जल जाए तो ऐसा हो जाता है।

प्रत्याहार

इंद्रियों को विषयों से हटाने का नाम ही प्रत्याहार है।

इंद्रियां मनुष्य को बाहरी विषयों में उलझाए रखती है।।

प्रत्याहार के अभ्यास से साधक अन्तर्मुखिता की स्थिति प्राप्त करता है।

जैसे एक कछुआ अपने अंगों को समेट लेता है उसी प्रकार प्रत्याहरी मनुष्य की स्थिति होती है।

यम नियम, आसान, प्राणायाम को साधने से प्रत्याहार की स्थिति घटित होने लगती है।

Friday, March 20, 2020

मुद्राएं और उनके प्रकार

6 आसन मुद्राएं:-

1.व्रक्त मुद्रा,
2.अश्विनी मुद्रा,
3.महामुद्रा,
4.योग मुद्रा,
5.विपरीत करणी मुद्रा,
6.शोभवनी मुद्रा।

पंच राजयोग मुद्राएं-

1.चाचरी,
2.खेचरी,
3.भोचरी,
4.अगोचरी,
5.उन्न्युनी मुद्रा।

*10 हस्त मुद्राएं:-

उक्त के अलावा हस्त मुद्राओं में प्रमुख दस मुद्राओं का महत्व है जो निम्न है:

-1.ज्ञान मुद्रा,
2.पृथवि मुद्रा,
3.वरुण मुद्रा,
4.वायु मुद्रा,
5.शून्य मुद्रा,
6.सूर्य मुद्रा,
7.प्राण मुद्रा,
8.लिंग मुद्रा,
9.अपान मुद्रा,
10.अपान वायु मुद्रा।

अन्य मुद्राएं :

1.सुरभी मुद्रा,
2.ब्रह्ममुद्रा,
3.अभयमुद्रा,
4.भूमि मुद्रा,
5.भूमि स्पर्शमुद्रा,
6.धर्मचक्रमुद्रा,
7.वज्रमुद्रा,
8.वितर्कमुद्रा,
9.जनाना मुद्रा,
10.कर्णमुद्रा,
11.शरणागतमुद्रा,
12.ध्यान मुद्रा,
13.सुची मुद्रा,
14.ओम मुद्रा,
15.जनाना और चीन मुद्रा,
16.अंगुलियां मुद्रा 
17.महात्रिक मुद्रा,
18.कुबेर मुद्रा,
19.चीन मुद्रा,
20.वरद मुद्रा,
21.मकर मुद्रा,
22.शंख मुद्रा,
23.रुद्र मुद्रा,
24.पुष्पपूत मुद्रा,
25.वज्र मुद्रा,
26.श्वांस मुद्रा,
27.हास्य बुद्धा मुद्रा,
28.योग मुद्रा,
29.गणेश मुद्रा 
30.डॉयनेमिक मुद्रा,
31.मातंगी मुद्रा,
32.गरुड़ मुद्रा,
33.कुंडलिनी मुद्रा,
34.शिव लिंग मुद्रा,
35.ब्रह्मा मुद्रा,
36.मुकुल मुद्रा,
37.महर्षि मुद्रा,
38.योनी मुद्रा,
39.पुशन मुद्रा,
40.कालेश्वर मुद्रा,
41.गूढ़ मुद्रा,
42.मेरुदंड मुद्रा,
43.हाकिनी मुद्रा,
44.कमल मुद्रा,
45.पाचन मुद्रा,
46.विषहरण मुद्रा या निर्विषिकरण मुद्रा,
47.आकाश मुद्रा,
48.हृदय मुद्रा,
49.जाल मुद्रा आदि।

योग क्रिया क्या है

प्रमुख 13 क्रियाएँ
1.नेती- सूत्र नेति, घॄत नेति,
2.धौति- वमन धौति, वस्त्र धौति, दण्ड धौति,
3.गजकरणी,
4.बस्ती- जल बस्ति,
5.कुंजर,
6.न्यौली,
7.त्राटक,
8.कपालभाति,
9.धौंकनी,
10.गणेश क्रिया,
11.बाधी,
12.लघु शंख प्रक्षालन और
13.शंख प्रक्षालयन।

Thursday, March 19, 2020

प्राणायाम क्या है

प्राणायाम के पंचक:-

1.व्यान,
2.समान,
3.अपान,
4.उदान और
5.प्राण।

प्राणायाम के प्रकार:-

1.पूरक,
2.कुम्भक और
3.रेचक।

इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्भक कहते हैं।

प्रमुख प्राणायाम:-

1.नाड़ीशोधन,
2.भ्रस्त्रिका,
3.उज्जाई,
4.भ्रामरी,
5.कपालभाती,
6.केवली,
7.कुंभक,
8.दीर्घ,
9.शीतकारी,
10.शीतली,
11.मूर्छा, 
12.सूर्यभेदन,
13.चंद्रभेदन,
14.प्रणव,
15.अग्निसार,
16.उद्गीथ,
17.नासाग्र,
18.प्लावनी,
19.शितायु आदि।

अन्य प्राणायाम:-

1.अनुलोम-विलोम प्राणायाम,
2.अग्नि प्रदीप्त प्राणायाम,
3.अग्नि प्रसारण प्राणायाम,
4.एकांड स्तम्भ प्राणायाम,
5.सीत्कारी प्राणायाम,
6.सर्वद्वारबद्व प्राणायाम,
7.सर्वांग स्तम्भ प्राणायाम,
8.सम्त व्याहृति प्राणायाम,
9.चतुर्मुखी प्राणायाम,
10.प्रच्छर्दन प्राणायाम,
11.चन्द्रभेदन प्राणायाम,
12.यन्त्रगमन प्राणायाम,
13.वामरेचन प्राणायाम,
14.दक्षिण रेचन प्राणायाम,
15.शक्ति प्रयोग प्राणायाम,
16.त्रिबन्धरेचक प्राणायाम,
17.कपाल भाति प्राणायाम,
18.हृदय स्तम्भ प्राणायाम,
19.मध्य रेचन प्राणायाम,
20.त्रिबन्ध कुम्भक प्राणायाम, 
21.ऊर्ध्वमुख भस्त्रिका प्राणायाम,
22.मुखपूरक कुम्भक प्राणायाम,
23.वायुवीय कुम्भक प्राणायाम,
24.वक्षस्थल रेचन प्राणायाम,
25.दीर्घ श्वास-प्रश्वास प्राणायाम,
26.प्राह्याभ्न्वर कुम्भक प्राणायाम,
27.षन्मुखी रेचन प्राणायाम
28.कण्ठ वातउदा पूरक प्राणायाम,
29.सुख प्रसारण पूरक कुम्भक प्राणायाम,
30.नाड़ी शोधन प्राणायाम व नाड़ी अवरोध प्राणायाम आदि।

प्रमुख आसन

किसी भी आसन की शुरुआत लेटकर अर्थात शवासन (चित्त लेटकर) और मकरासन (औंधा लेटकर) में और बैठकर अर्थात दंडासन और वज्रासन में, खड़े होकर अर्थात सावधान मुद्रा या नमस्कार मुद्रा से होती है। यहां सभी तरह के आसन के नाम दिए गए हैं। 

1.सूर्यनमस्कार, 2.आकर्णधनुष्टंकारासन, 3.उत्कटासन, 

4.उत्तान कुक्कुटासन, 5.उत्तानपादासन, 6.उपधानासन,

7.ऊर्ध्वताड़ासन, 8.एकपाद ग्रीवासन, 9.कटि उत्तानासन

10.कन्धरासन, 11.कर्ण पीड़ासन, 12.कुक्कुटासन,

13.कुर्मासन, 14.कोणासन, 15.गरुड़ासन

16.गर्भासन, 17.गोमुखासन, 18.गोरक्षासन,

19.चक्रासन, 20.जानुशिरासन, 21.तोलांगुलासन

22.त्रिकोणासन, 23.दीर्घ नौकासन, 24.द्विचक्रिकासन,

25.द्विपादग्रीवासन, 26.ध्रुवासन, 27.नटराजासन,

28.पक्ष्यासन, 29.पर्वतासन, 30.पशुविश्रामासन,

31.पादवृत्तासन, 32.पादांगुष्टासन, 33.पादांगुष्ठनासास्पर्शासन, 

34.पूर्ण मत्स्येन्द्रासन, 35.पॄष्ठतानासन, 36.प्रसृतहस्त वृश्चिकासन,

37.बकासन, 38.बध्दपद्मासन, 39.बालासन,

40.ब्रह्मचर्यासन, 41.भूनमनासन, 42.मंडूकासन,

43.मर्कटासन, 44.मार्जारासन, 45.योगनिद्रा,

46.योगमुद्रासन, 47.वातायनासन, 48.वृक्षासन,

49.वृश्चिकासन, 50.शंखासन, 51.शशकासन,

52.सिंहासन, 53.सिद्धासन, 54.सुप्त गर्भासन,

55.सेतुबंधासन, 56.स्कंधपादासन,57.हस्तपादांगुष्ठासन,

58.भद्रासन, 59.शीर्षासन, 60.सूर्य नमस्कार,

61.कटिचक्रासन, 62.पादहस्तासन, 63.अर्धचन्द्रासन,

64.ताड़ासन, 65.पूर्णधनुरासन, 66.अर्धधनुरासन,

67.विपरीत नौकासन, 68.शलभासन, 69.भुजंगासन,

70.मकरासन, 71.पवन मुक्तासन, 72.नौकासन,

73.हलासन, 74.सर्वांगासन, 75.विपरीतकर्णी आसन,

76.शवासन, 77.मयूरासन, 78.ब्रह्म मुद्रा,

79.पश्चिमोत्तनासन, 80.उष्ट्रासन, 81.वक्रासन,

82.अर्ध-मत्स्येन्द्रासन, 83.मत्स्यासन, 84.सुप्त-वज्रासन,

85.वज्रासन, 86.पद्मासन आदि।

Wednesday, March 18, 2020

Basic knowledge of yoga

योग का वर्णन वेदों में, फिर उपनिषदों में और फिर गीता में मिलता है, लेकिन पतंजलि और गुरु गोरखनाथ ने योग के बिखरे हुए ज्ञान को व्यवस्थित रूप से लिपिबद्ध किया। योग हिन्दू धर्म के छह दर्शनों में से एक है। ये छह दर्शन हैं- 1.न्याय 2.वैशेषिक 3.मीमांसा 4.सांख्य 5.वेदांत और 6.योग।

1.राजयोग:-

यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि यह पतंजलि के राजयोग के आठ अंग हैं। इन्हें अष्टांग योग भी कहा जाता है।

2.हठयोग:-

षट्कर्म, आसन, मुद्रा, प्रत्याहार, ध्यान और समाधि- ये हठयोग के सात अंग है, लेकिन हठयोगी का जोर आसन एवं कुंडलिनी जागृति के लिए आसन, बंध, मुद्रा और प्राणायम पर अधिक रहता है। यही क्रिया योग है।

3.लययोग:-

यम, नियम, स्थूल क्रिया, सूक्ष्म क्रिया, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। उक्त आठ लययोग के अंग है।

4.ज्ञानयोग :-

साक्षीभाव द्वारा विशुद्ध आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना ही ज्ञान योग है। यही ध्यानयोग है।

5.कर्मयोग:-

कर्म करना ही कर्म योग है। इसका उद्‍येश्य है कर्मों में कुशलता लाना। यही सहज योग है।

6.भक्तियोग :-

भक्त श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन रूप- इन नौ अंगों को नवधा भक्ति कहा जाता है। भक्ति योगानुसार व्यक्ति सालोक्य, सामीप्य, सारूप तथा सायुज्य-मुक्ति को प्राप्त होता है, जिसे क्रमबद्ध मुक्ति कहा जाता है।

योग के मुख्‍य अंग

यम, नियम, अंग संचालन, आसन, क्रिया, बंध, मुद्रा, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। 

इसके अलावा योग के प्रकार, योगाभ्यास की बाधाएं, योग का इतिहास, योग के प्रमुख ग्रंथ।

योग के प्रकार

1.राजयोग,
2.हठयोग,
3.लययोग,
4. ज्ञानयोग,
5.कर्मयोग और
6. भक्तियोग। 

इसके अलावा बहिरंग योग, नाद योग, मंत्र योग, तंत्र योग, कुंडलिनी योग, साधना योग, क्रिया योग, सहज योग, मुद्रायोग, और स्वरयोग आदि योग के अनेक आयामों की चर्चा की जाती है। लेकिन सभी उक्त छह में समाहित हैं।

पांच यम

1.अहिंसा,
2.सत्य,
3.अस्तेय,
4.ब्रह्मचर्य और 
5.अपरिग्रह।

पांच नियम

1.शौच,
2.संतोष,
3.तप,
4.स्वाध्याय और
5.ईश्वर प्राणिधान।

अंग संचालन

1.शवासन, 2.मकरासन, 3.दंडासन और 4. नमस्कार मुद्रा में अंग संचालन किया जाता है जिसे सूक्ष्म व्यायाम कहते हैं। 

इसके अंतर्गत आंखें, कोहनी, घुटने, कमर, अंगुलियां, पंजे, मुंह आदि अंगों की एक्सरसाइज की जाती है।

प्रमुख बंध

1.महाबंध,
2.मूलबंध,
3.जालन्धरबंध और
4.उड्डियान।

मत्स्यासन

मत्स्यासन मत्स्य का अर्थ है- मछली। इस आसन में शरीर का आकार मछली जैसा बनता है, अत: यह मत्स्यासन कहलाता है। यह आसन छाती को चौड़ा कर उसे स्...