चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना ही धारणा है।
प्रत्याहार के सधने से धारणा स्वत: ही घटित होती है।
धारणा धारण किया हुआ चित्त कैसी भी धारणा या कल्पना करता है, तो वैसे ही घटित होने लगता है।
यदि ऐसे व्यक्ति किसी एक कागज को हाथ में लेकर यह सोचे की यह जल जाए तो ऐसा हो जाता है।
प्रत्याहार के सधने से धारणा स्वत: ही घटित होती है।
धारणा धारण किया हुआ चित्त कैसी भी धारणा या कल्पना करता है, तो वैसे ही घटित होने लगता है।
यदि ऐसे व्यक्ति किसी एक कागज को हाथ में लेकर यह सोचे की यह जल जाए तो ऐसा हो जाता है।
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