Sunday, June 28, 2020

मत्स्यासन

मत्स्यासन

मत्स्य का अर्थ है- मछली। इस आसन में शरीर का आकार मछली जैसा बनता है, अत: यह मत्स्यासन कहलाता है। यह आसन छाती को चौड़ा कर उसे स्वस्थ बनाए रखने में सक्षम है।

सावधानी

छाती व गले में अत्यधिक दर्द या अन्य कोई रोग होने की स्थिति में यह आसन न करें। बड़ी सावधानी से यह आसन करना चाहिए, शीघ्रता से गर्दन में मोच आ जाने का भय रहता है, क्योंकि धड़ को बिल्कुल ऊपर कर देना होता है। यह आसन एक मिनट से दो मिनट तक किया जा सकता है।

इसके लाभ

इससे आंखों की रोशनी बढ़ती है। गला साफ रहता है तथा छाती और पेट के रोग दूर होते हैं। रक्ताभिसरण की गति बढ़ती है, जिससे चर्म रोग नहीं होता। दमे के रोगियों को इससे लाभ मिलता है। पेट की चर्बी घटती है। खांसी दूर होती है।



Thursday, April 30, 2020

वज्रासन

वज्रासन

वज्र का अर्थ होता है कठोर और दूसरा यह कि इंद्र के एक शस्त्र का नाम वज्र था। इससे पैरों की जांघें मजबूत होती है। शरीर में रक्त संचार बढ़ता है। पाचन क्रिया के लिए यह बहुत लाभदायक है। भोजन पश्चात इसी आसन में कुछ देर बैठना चाहिए। यह टांगों की मांसपेशियों को भी मजबूत बनाता है। घुटनों में दर्द होने की स्थिति में यह आसन न करें

आसन की विधि

दोनों घुटने सामने से मिले हों। पैर की एड़ियाँ बाहर की और पंजे अन्दर की ओंर हों। बायें पैर के अंगूठे के आस पास मैं दायें पैर का अंगूठा। दोनों हाथ घुटनों के ऊपर। इस आसन में घुटनों को मोड़कर इस तरह से बैठते हैं कि नितंब दोनों एड़ियों के बीच में आ जाएं, दोनों पैरों के अंगूठे आपस में मिले रहें और एड़ियों में अंतर भी बना रहे।
ऐसे करें वज्रासन
  • इस आसन को करने के लिए घुटनों को मोड़कर पंजों के बल सीधा बैठें।
  • दोनों पैरों के अंगूठे आपस में मिलने चाहिए और एड़ियों में थोड़ी दूरी होनी चाहिए।
  • शरीर का सारा भार पैरों पर रखें और दोनों हाथों को जांघों पर रखें।
  • आपकी कमर से ऊपर का हिस्सा बिल्कुल सीधा होना चाहिए। थोड़ी देर इस अवस्था में बैठकर लंबी सांस लें।

सावधानी

घुटनों में दर्द होने की स्थिति में यह आसन न करें।

इसके लाभ

इस आसन से शरीर मजबूत और स्थिर बनता है। इससे रीढ़ की हड्डी और कंधे सीधे होते हैं। इससे शरीर में रक्त-संचार समरस होता है और इस प्रकार शिरा के रक्त को धमनी के रक्त में बदलने का रोग नहीं हो पाता। यही एकमात्र ऐसा आसन है जिसे आप खाना खाकर भी कर सकते हैं। इससे भोजन आसानी से पचता है। यह टांगों की मांसपेशियों को भी मजबूत बनाता है।

शरीर को सुडौल बनाए रखता है। उच्च रक्तचाप कम होता है। वजन कम करने में मददगार है। अपच, गैस, कब्ज इत्यादि विकारों को दूर करता है। महिलाओं में मासिक धर्म की अनियमितता दूर होती है। रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है। पाचन शक्ति बढ़ाता है और प्रजनन प्रणाली को सशक्त बनाता है। इस आसन में धीरे-धीरे लंबी और गहरी सांस लेने से फेफड़े मजबूत होते हैं।

Tuesday, March 24, 2020

योग का अंग है 'ॐ' और 'सूर्य नमस्कार'

कुछ मुस्लिम धर्मगुरुओं के विरोध के चलते पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस में 'ॐ' का उच्चारण और 'सूर्य नमस्कार' को हटा दिया गया। हटाए जाने के बाद भी हालांकि वे लोग कहीं भी योग करते नहीं दिखाई दिए। योग से 'ॐ' और 'सूर्य नमस्कार' को हटाना ऐसा ही है, जैसे कि आरती से घंटी को, अंगों से वस्त्रों को और फिल्म से टाइटल को या प्रोमो को। 

विरोधी मानते हैं कि 'ॐ' और 'सूर्य नमस्कार' को साजिश के तहत योग में जोड़ा गया। उनकी यह बात किस हद तक सही है यह तो वही बता सकते हैं, लेकिन यहां यह कहना होगा कि पतंजलि के वक्त न तो ईसाई धर्म था और न इस्लाम, तब साजिश किसके खिलाफ और क्यों करें? उस काल में योग आम लोगों के बीच प्रचलित भी नहीं था, यह सिर्फ साधुओं और संन्यासियों के बीच ही मोक्ष प्राप्ति का साधन था। तभी से इसके साथ 'ॐ' और 'सूर्य नमस्कार' करने की परंपरा चली आ रही है। 

ओम (ॐ) क्या है : 'ॐ' को अनहद नाद कहते हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति के भीतर और इस ब्रह्मांड में सतत गूंजता रहता है। इसके गूंजते रहने का कोई कारण नहीं। सामान्यत: नियम है कि ध्‍वनि उत्पन्न होती है किसी की टकराहट से, लेकिन अनाहत को उत्पन्न नहीं किया जा सकता। 

ओम प्रत्येक धर्म में है। मध्य एशिया में जाकर ओम ओमीन और आमीन हो गया। ओम 3 अक्षरों से मिलकर बना है- अ, उ और म। ये मूल ध्वनियां हैं, जो हमारे चारों तरफ हर समय उच्चारित होती रहती हैं। आप नदी किनारे, समुद्र किनारे या किसी बंद कमरे में बैठकर इसे गौर से सुनने का प्रयास करें। ध्यान दें, गौर करें कि बाहर जो ढेर सारी आवाजें हैं उनमें एक आवाज ऐसी है, जो सतत जारी रहती है- जैसे प्लेन की आवाज जैसी आवाज, फेन की आवाज जैसी आवाज या जैसे कोई कर रहा है 'ॐ' का उच्‍चारण अर्थात सन्नाटे की आवाज। इसी तरह शरीर के भीतर भी आवाज जारी है। ध्यान दें। आंखें बंद कर यह आवाज सुनें। सुनने का अभ्यास गहरा होगा तो आपको पता चलेगा कि यह आवाज आपके भीतर भी है।

लाभ :

अ, उ और म- यह नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र को जगाता है। ओम के निरंतर जाप से तनाव से पूरी तरह मुक्ति मिलती है। ओम के जाप से दिमाग शांत होता है और बहुत-सी शारीरिक तकलीफें दूर होती हैं। इससे आंतरिक और बाह्य विकारों का निदान होता है और नियमित जाप से व्यक्ति के प्रभामंडल में वृद्धि होती है। यह रिसर्च द्वारा सिद्ध हो चुका है।

सूर्य की शक्ति को नमस्कार :

मानव सहित सभी प्राणी, जीव और जंतु धरती के अंश हैं। धरती पर जीवन है पंच तत्वों के कारण। पंच तत्व हैं- आकाश, अग्नि, वायु, जल और धरती। ये पांचों तत्व व्यक्ति के भीतर भी हैं और बाहर भी। सूर्य को अग्नि तत्व माना गया है। वेदों में इसे जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य न हो तो धरती पर सभी प्रकार का जीवन नष्ट हो जाएगा। कई ऐसे पुरुष हुए हैं जिन्होंने सूर्य साधना के बल पर खुद को अजर-अमर कर लिया है और कई ऐसे हैं, जो कई वर्षों से अन्न और जल के बगैर भी जी रहे हैं। 'सूर्य सिद्धांत मणि' जैसे कई ग्रंथ हैं, जो सूर्य की रोशनी के महत्व का वर्णन करते हैं। आजकल सौर ऊर्जा से बिजली और अन्य उपकरण चलने लगे हैं। भविष्य में इसके महत्व को और समझा जाएगा। 

'सूर्य नमस्कार' क्या है? अब बात करते हैं 'सूर्य नमस्कार' की। सूर्य को नमस्कार करने का अर्थ उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना है। यह हमारा नैतिक कर्तव्य है, क्योंकि उसी के कारण हम जिंदा हैं। यदि आप उसके प्रति श्रद्धा के भाव से नहीं भरे हैं तो आपसे किसी अन्य के प्रति प्रेम या संवेदनशीलता की अपेक्षा नहीं की जा सकती। हालांकि 'सूर्य नमस्कार' योग करते वक्त किसी भी प्रकार से सूर्य का ध्यान, पूजा, प्रार्थना या नमस्कार करने की बाध्‍यता नहीं। 

'सूर्य नमस्कार' का नाम और कुछ भी हो सकता था, जैसे कि सर्वांग योगासन या षाष्टांग योग। दरअसल, 'सूर्य नमस्कार' में योग के सभी प्रमुख आसनों का समावेश हो जाता है। यह सभी आसनों का एक पैकेज है। व्यक्ति यदि सभी आसन न करते हुए मात्र 'सूर्य नमस्कार' ही करता रहे तो वह संपूर्ण आसनों का लाभ प्राप्त कर सकता है, क्योंकि 'सूर्य नमस्कार' करते वक्त ताड़ासन, अर्धचक्रासन, पादहस्तासन, आंजनेय आसन, प्रसरणासन, द्विपाद प्रसरणासन, भू-धरासन, अष्टांग, प्रविधातासन तथा भुजंगासन आदि सभी आसनों का समावेश हो जाता है।

'सूर्य नमस्कार' के लाभ :

'सूर्य नमस्कार' अत्यधिक लाभकारी है। इसके अभ्यास से हाथों और पैरों का दर्द दूर होकर उनमें सबलता आती है। गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर हल्का-फुल्का हो जाता है। 

सूर्य नमस्कार द्वारा त्वचा रोग समाप्त हो जाते हैं अथवा इनके होने की आशंका समाप्त हो जाती है। इस अभ्यास से कब्ज आदि उदर रोग समाप्त हो जाते हैं और पाचन तंत्र की क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है। इस अभ्यास द्वारा हमारे शरीर की छोटी-बड़ी सभी नस-नाड़ियां क्रियाशील हो जाती हैं इसलिए आलस्य, अतिनिद्रा आदि विकार दूर हो जाते हैं। 

इस योग से पेट की मांसपेशियां मजबूत हो जाती हैं। उससे पाचन शक्ति बढ़ती है। शरीर के ज्यादा वजन को घटाने में मददगार है। शरीर में खून का प्रवाह तेज होने से ब्लड प्रेशर की बीमारी में आराम मिलता है। बालों को असमय सफेद होने, झड़ने व रूसी से बचाता है। व्यक्ति में धीरज रखने की क्षमता बढ़ती है। सहनशीलता बढ़ाने और क्रोध पर काबू रखने में मददगार है। शरीर में लचीलापन आता है जिससे पीठ और पैरों के दर्द की आशंका कम होती है।

योग के फायदे

शरीर को अलग अलग मुद्राओं में मोड़ना या असंभव लगने वाली क्रियाएं करना ही योग नहीं है। योग में व्यक्ति का मस्तिष्क और शरीर कुछ इस तरह मिलते हैं जिससे दिमागी कसरत तो होती ही है साथ ही शरीर को बिना कोई नुकसान पहुंचे अत्यंत लाभ भी मिलते हैं। 

योग से उच्च रक्तचाप सामान्य होता है, तनाव कम होता है, मोटापे और कोलेस्ट्रोल पर नियंत्रण होता है इसके साथ ही व्यक्ति का रक्तसंचार तेज होता है जिससे सौंदर्य में भी वृद्धि होती है। इसका प्रभाव तन ही नहीं बल्कि मन पर भी पड़ता है। योग करने से मन शांत रहता है। योग के जादुई फायदों के कारण ही पूरा संसार अब योग की ओर बढ़ रहा है। आध्यात्मिक दृष्टि से भी योग के अलग फायदे हैं। आइए जानते हैं योगासन के गुण और लाभ के बारे में-

1- मन की शांति

योग के संपूर्ण रूप से सांस लेने और संतुलन वाले आसनों पर केंद्रित होने के कारण मस्तिष्क शांत रहता है। साथ ही शरीर भी संतुलित रहता है। इसके कारण हम मस्तिष्क के दोनों भागों से काम लेते हैं जिससे आंतरिक संचार बेहतर होता है। योग करने से मस्तिष्क के सोचने और सृजनात्मकता वाले हिस्सों का भी संतुलन बना रहता है।

2- गर्भावस्था में योग

गर्भावस्था में स्वस्थ रहने का सबसे आसान तरीका है योग को अपना जाए। नियमित रूप से योग करने वाली गर्भवती महिलाओं को थकान कम होती है तनाव दूर होता है साथ ही मांसपेशियों में खिंचाव के कारण लचीलापन भी आता है। 

इतना ही नहीं बेहतर रक्तसंचार पाचन और स्नायुतांपर नियंत्रण रहता है। इसके कारण पीठ में दर्द नींद न आना पैरों में दर्द अपच जैसे लक्षणों में आराम मिलता है। हालांकि गर्भवती महिलाओं को कुछ भी शुरू करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर लेनी चाहिए।

3- बेहतर रक्तसंचार

अलग अलग तरह की योग मुद्राओं और सांस लेने की क्रियाओं के सांमजस्य के कारण योग से शरीर में बेहतर रक्तसंचार होता है। बेहतर रक्तसंचार से शरीर में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों को बेहतर प्रवहन होने में मदद मिलती है। जिससे त्वचा और आंतरिक अंग स्वस्थ रहते है।

4- मोटापे से मुक्ति के लिए योग

योग से पेट के अलावा शरीर के अन्य भागों से भी अतिरिक्त चर्बी को हटा सकते हैं। अलग अलग हिस्सों की चर्बी हटाने के लिए अलग अलग योग हैं। किसी एक कसरत से ऐसा होना संभव नहीं इसलिए धैर्य के साथ योग को अपनाएं।

5- स्वस्थ हृदय

ऐसा कोई भी योग जिसमें कुछ समय के लिए सांस रोकी जाती है हृदय और उसकी धमनियों को स्वस्थ रखता है। योग रक्तसंचार को बेहतर करता है जिससे रक्त एक जगह रूकता नहीं और हृदय स्वस्थ रहता है।

6- दर्द से रखे दूर

योग से शरीर का लचीलापन और एनर्जी बढ़ती है जिससे पीठ का दर्द जोड़ों का दर्द आदि में बेहद आराम मिलता है। इससे रीढ़ की हड्डी में दबाव और जकड़न से भी आराम मिलता है। इतना ही नहीं गलत ढंग से बैठने या चलने के कारण होने वाले दर्द में भी योग से आराम मिलता है।

7- सांस लेने की बेहतर प्रक्रिया

योग के विभिन्न आसानों से फेफड़े और उदर भाग की क्षमता बढ़ती है! इससे दैनिक कार्यक्षमता बढ़ती है साथ ही सहनशक्ति में इजाफा होता है। गहरी सांस लेने में भी आराम मिलता है जिससे विभिन्न प्रकार के भौतिक और मानसिक तनावों से मुक्ति मिलती है।

8- बना रहता है शरीर का संतुलन

ठीक ढंग से न बैठना ज्यादा ट्रैवल करना या हमेशा बाइक पर रहना आदि के कारण शरीर का संतुलन बिगड़ने लगता है। योग करने से शरीर का संतुलन बना रहता है। कई बार गिरकर चोट लगने हड्डी के टूटने पीठ आदि संबंधित समस्याओं में दर्द के कारण भी संतुलन बिगड़ता है। 

योग से शरीर का लचीलापन बढ़ता है साथ ही दिमाग भी तेज होता है।

9- तनाव को करें कम

भागमभाग भरी जिंदगी में योग करने से अपार शांति मिलती है। पूरे शरीर में रक्तसंचार बेहतर होता है जिससे मस्तिष्क हल्का महसूस करता है और तनाव कम होता है।

10- संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए अपनाएं योग

अच्छा स्वास्थ्य केवल बीमारियों से दूर रहना ही नहीं है बल्कि अपने मन और भावनाओं के बीच संतुलन को स्थापित करना भी है। योग से न केवल बीमारियां दूर होती हैं बल्कि योग आपको गतिशील, खुश और उत्साही भी बनाता है।

11- सौंदर्य को बढ़ाए

शारीरिक स्वास्थ्य के साथ ही योग से चेहरे का नूर भी बढ़ाया जा सकता है। मुहांसों से लेकर डल स्किन और बालों को सुंदर बनाने में भी योग महत्वपूर्ण योगदान देता है। 

इनके अलावा भी योग के और बहुत से फायदे हैं। योग के विभिन्न आसन अलग अलग बीमारियों की रोकथाम में फायदेमंद हैं। हाल के वर्षों में योग को लेकर हुई जागरुकता ने इसे दुनिया भर में प्रसिद्ध कर दिया है।

योग ग्रंथ

वेद, उपनिषद्, भगवद गीता, हठ योग प्रदीपिका, योग दर्शन, शिव संहिता और विभिन्न तंत्र ग्रंथों में योग विद्या का उल्लेख मिलता है। सभी को आधार बनाकर पतंजलि ने योग सूत्र लिखा। योग पर लिखा गया सर्वप्रथम सुव्यव्यवस्थित ग्रंथ है- योगसूत्र। योगसूत्र को पांतजलि ने 200 ई.पूर्व लिखा था। इस ग्रंथ पर अब तक हजारों भाष्य लिखे गए हैं, लेकिन कुछ खास भाष्यों का यहां उल्लेख लिखते हैं।

व्यास भाष्य:

व्यास भाष्य का रचना काल 200-400 ईसा पूर्व का माना जाता है। महर्षि पतंजलि का ग्रंथ योग सूत्र योग की सभी विद्याओं का ठीक-ठीक संग्रह माना जाता है। इसी रचना पर व्यासजी के 'व्यास भाष्य' को योग सूत्र पर लिखा प्रथम प्रामाणिक भाष्य माना जाता है। व्यास द्वारा महर्षि पतंजलि के योग सूत्र पर दी गई विस्तृत लेकिन सुव्यवस्थित व्याख्या।

तत्त्ववैशारदी :

पतंजलि योगसूत्र के व्यास भाष्य के प्रामाणिक व्याख्याकार के रूप में वाचस्पति मिश्र का 'तत्त्ववैशारदी' प्रमुख ग्रंथ माना जाता है। वाचस्पति मिश्र ने योगसूत्र एवं व्यास भाष्य दोनों पर ही अपनी व्याख्या दी है। तत्त्ववैशारदी का रचना काल 841 ईसा पश्चात माना जाता है।

योगवार्तिक :

विज्ञानभिक्षु का समय विद्वानों के द्वारा 16वीं शताब्दी के मध्य में माना जाता है। योगसूत्र पर महत्वपूर्ण व्याख्या विज्ञानभिक्षु की प्राप्त होती है जिसका नाम ‘योगवार्तिक’ है।

भोजवृत्ति :

भोज के राज्य का समय 1075-1110 विक्रम संवत माना जाता है। धरेश्वर भोज के नाम से प्रसिद्ध व्यक्ति ने योग सूत्र पर जो 'भोजवृत्ति नामक ग्रंथ लिखा है वह भोजवृत्ति योगविद्वजनों के बीच समादरणीय एवं प्रसिद्ध माना जाता है। कुछ इतिहासकार इसे 16वीं सदी का ग्रंथ मानते हैं।

योग का संक्षिप्त इतिहास

योग का उपदेश सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ ब्रह्मा ने सनकादिकों को, पश्चात विवस्वान (सूर्य) को दिया। बाद में यह दो शखाओं में विभक्त हो गया। एक ब्रह्मयोग और दूसरा कर्मयोग। ब्रह्मयोग की परम्परा सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुर‍ि, वोढु और पच्चंशिख नारद-शुकादिकों ने शुरू की थी। यह ब्रह्मयोग लोगों के बीच में ज्ञान, अध्यात्म और सांख्‍य योग नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

दूसरी कर्मयोग की परम्परा विवस्वान की है। विवस्वान ने मनु को, मनु ने इक्ष्वाकु को, इक्ष्वाकु ने राजर्षियों एवं प्रजाओं को योग का उपदेश दिया। उक्त सभी बातों का वेद और पुराणों में उल्लेख मिलता है। वेद को संसार की प्रथम पुस्तक माना जाता है जिसका उत्पत्ति काल लगभग 10000 वर्ष पूर्व का माना जाता है। पुरातत्ववेत्ताओं अनुसार योग की उत्पत्ति 5000 ई.पू. में हुई। गुरु-शिष्य परम्परा के द्वारा योग का ज्ञान परम्परागत तौर पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलता रहा।

भारतीय योग जानकारों के अनुसार योग की उत्पत्ति भारत में लगभग 5000 वर्ष से भी अधिक समय पहले हुई थी। योग की सबसे आश्चर्यजनक खोज 1920 के शुरुआत में हुई। 1920 में पुरातत्व वैज्ञानिकों ने 'सिंधु सरस्वती सभ्यता' को खोजा था जिसमें प्राचीन हिंदू धर्म और योग की परंपरा होने के सबूत मिलते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को 3300-1700 बी.सी.ई. पूराना माना जाता है।

कुंडलिनी योग

कुंडलिनी शक्ति सुषुम्ना नाड़ी में नाभि के निचले हिस्से में सोई हुई अवस्था में रहती है, जो ध्यान के गहराने के साथ ही सभी चक्रों से गुजरती हुई सहस्रार चक्र तक पहुंचती है।

ये चक्र 7 होते हैं:-

मूलाधार,
स्वाधिष्ठान,
मणिपुर,
अनाहत,
विशुद्धि,
आज्ञा और 
सहस्रार। 

72 हजार नाड़ियों में से प्रमुख रूप से तीन है:
इड़ा,
पिंगला और 
सुषुम्ना।

इड़ा और पिंगला नासिका के दोनों छिद्रों से जुड़ी है जबकि सुषुम्ना भ्रकुटी के बीच के स्थान से। स्वरयोग इड़ा और पिंगला के विषय में विस्तृत जानकारी देते हुए स्वरों को परिवर्तित करने, रोग दूर करने, सिद्धि प्राप्त करने और भविष्यवाणी करने जैसी शक्तियाँ प्राप्त करने के विषय में गहन मार्गदर्शन होता है।

दोनों नासिका से सांस चलने का अर्थ है कि उस समय सुषुम्ना क्रियाशील है। ध्यान, प्रार्थना, जप, चिंतन और उत्कृष्ट कार्य करने के लिए यही समय सर्वश्रेष्ठ होता है।

मत्स्यासन

मत्स्यासन मत्स्य का अर्थ है- मछली। इस आसन में शरीर का आकार मछली जैसा बनता है, अत: यह मत्स्यासन कहलाता है। यह आसन छाती को चौड़ा कर उसे स्...